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Kabhi Kabhi

कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता हैं
कि ज़िंदगी तेरी जुल्फों कि नर्म छांव मैं गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।

यह रंज-ओ-ग़म कि सियाही जो दिल पे छाई हैं
तेरी नज़र कि शुओं मैं खो भी सकती थी।

मगर यह हो न सका और अब ये आलम हैं
कि तू नहीं, तेरा ग़म तेरी जुस्तजू भी नहीं।

गुज़र रही हैं कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इससे किसी के सहारे कि आरझु भी नहीं.

न कोई राह, न मंजिल, न रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों मैं ज़िंदगी मेरी.

इन्ही अंधेरों मैं रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हम-नफस, मगर यूंही

कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता है.

10 replies on “Kabhi Kabhi”

होता है… कभी कभी ऐसा भी होता है….
जिंदगी हर रंग दिखाती है…
कभी कभी Black & White कुछ जादा दिन तक चलता है…
Hope that life fills your life with vibrant colors pretty soon…till then, just Hang On..

LOL – no, but parts of this one delivery by BigB struck a chord so well with me, that I was forced to keep repeating these words to myself for a long long time till I fell asleep yesterday.

तेरा हाथ हाथ में हो अगर, तो सफ़र ही अस्ल-ए-हयात है
मेरे हर कदम पे हैं मंजिलें, तेरा साथ गर मेरे साथ है
मेरी बात का मेरी हमनफ़ज़, तू जवाब दे की ना दे मुझे
तेरी एक चुप में छुपी हज़ार बातों की एक बात है
तेरा हाथ हाथ में हो अगर…

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